- by Mahtab Alam
- 2025-12-10 14:56:53
स्वदेशी इनक्रेडिबल न्यूज़
भारत में चुनाव आयोग द्वारा शुरू की गई SIR (Special Intensive Revision) प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक हलकों और नागरिक समाज में बहस तेज हो गई है। यह प्रक्रिया मतदाता सूची की गहराई से समीक्षा करने हेतु लागू की गई है। इसके तहत बूथ-स्तर पर मतदाताओं के नाम, पहचान और पते की घर-घर जाकर पुष्टि की जा रही है।
चुनाव आयोग का कहना है कि यह एक व्यापक और "इंटेंसिव" पुनरीक्षण अभियान है, जिसका मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची को स्वच्छ, सटीक और विश्वसनीय बनाना है। अधिकारी बताते हैं कि BLO यानी Booth Level Officers इस प्रक्रिया में केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
SIR के तहत डुप्लिकेट प्रविष्टियों, मृतक मतदाताओं, स्थानांतरित नागरिकों तथा अवैध प्रवासियों के नाम सूची से हटाने का कार्य किया जा रहा है। चुनाव आयोग का कहना है कि यह उसकी संवैधानिक ज़िम्मेदारी है ताकि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष रहे और गलत प्रविष्टियों के कारण परिणाम प्रभावित न हों।
इस विशेष अभियान के दौरान ऐसे पात्र नागरिक—जो हाल ही में 18 वर्ष के हुए हैं या नए पते पर स्थानांतरित हुए हैं—उन्हें अपनी जानकारी अपडेट करवाने और मतदाता सूची में शामिल होने का मौका मिल रहा है। लोग जन्मतिथि, पहचान और पते से जुड़े दस्तावेज़ों को भी इसी अवधि में सुधार सकते हैं।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह पूरी प्रक्रिया Representation of the People Act, 1950 की धारा 21 के तहत की जा रही है। यह धारा आयोग को आवश्यकता पड़ने पर विशेष पुनरीक्षण (Special Revision) का अधिकार देती है।
EC के अनुसार, SIR का उद्देश्य “देशभर में मतदाता सूची को साफ़-सुथरा और विश्वसनीय बनाना” है।
हाल ही में चुनाव आयोग ने SIR प्रक्रिया को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू करने की घोषणा की है।
बिहार जैसे राज्यों में SIR के दौरान बड़ी संख्या में नाम हटाए जाने की घटनाएँ सामने आई हैं, जिसके कारण राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने चिंता भी जताई है।
विपक्षी दलों का आरोप है कि SIR के तहत लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, जिससे मत वंचना (Voter Disenfranchisement) की आशंका बढ़ गई है।
कई संगठनों ने यह भी आरोप लगाया है कि कुछ राज्यों—विशेषकर पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु—में इस प्रक्रिया का उपयोग राजनीतिक एजेंडा के तहत किया जा सकता है।
पहचान संबंधी दस्तावेज़ों को लेकर भी विवाद हुआ है, क्योंकि कथित रूप से कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों को पहचान प्रमाण के रूप में नहीं माना गया। इससे आम नागरिकों में भ्रम और चिंता बढ़ी है।
बिहार में SIR के बाद मतदाता संख्या में आई कमी को लेकर भी कई दलों ने संभावित मतदान परिणामों पर प्रभाव की आशंका जताई है।
चुनाव आयोग का दावा है कि SIR एक आवश्यक और पारदर्शी प्रक्रिया है जो लोकतंत्र को मजबूत करेगी, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक दखल और मत अधिकारों में कटौती की आशंका के रूप में देख रहा है।
देश के कई राज्यों में चल रहे इस अभियान के अंतिम परिणाम और प्रभाव पर सभी की निगाहें टिकी हैं।
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Er. Shakti Shankar Singh (Chief Editor)